केंद्र ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सरकार संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में आईपीसी की धारा 124 (ए) के तहत राजद्रोह कानून में बदलाव ला सकती है। बता दें कि शीर्ष अदालत देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
शीर्ष अदालत ने देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली कुछ याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस भी जारी किया था। भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित के नेतृत्व वाली शीर्ष अदालत ने जनवरी के दूसरे सप्ताह में सुनवाई के लिए राजद्रोह कानून की संवैधानिक की वैधता को चुनौती देने वाले मामलों को पोस्ट किया था। आईपीसी की धारा 124 (ए) देशद्रोह के अपराध को अपराध बनाती है।
इससे पहले मई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि जब तक सरकार इस कानून की समीक्षा नहीं करती जबतक जेल में बंद लोग जमानत के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं और साथ ही इस विवादास्पद राजद्रोह कानून पर रोक रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए जो अपराध को अपराध बनाती है। सरकार द्वारा कानून की समीक्षा करने की कवायद पूरी होने तक राजद्रोह को स्थगित रखा जाए।
भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और हेमा कोहली की पीठ ने केंद्र सरकार और राज्यों से धारा 124 ए के तहत कोई भी मामला दर्ज नहीं करने को भी कहा तथा। पीठ ने कहा कि अगर भविष्य में ऐसे मामले दर्ज होते हैं, तो आरोपी अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं और अदालतों को भी इसका तेजी से निपटान करना होगा। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि जिन लोगों पर पहले से ही धारा 124ए के तहत मामला दर्ज है आईपीसी के तहत जेल में बंद हैं, जमानत के लिए संबंधित अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं।