Congress Crisis: कर्नाटक के बाद राजस्थान की बारी, Sachin Pilot ने निकाल लिया Gahlot की जादूगरी का तोड़!

    पायलट ने अपने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस और फिर जन संघर्ष यात्रा कर पायलट ने अपने तेवर दिखा दिए, लेकिन पार्टी आलाकमान की ओर से अब तक पायलट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई.

    कर्नाटक में सीएम की कुर्सी को लेकर चल रही खींचतान आज भी खत्म नहीं हुई. इस बीच राजस्थान की सियासी की गर्मी दिल्ली में बैठें कांग्रेस आलाकमान का पसीना छुड़ा रहा है. राजस्थान में सचिन पायलट और सीएम अशोक गहलोत के बीच तनातनी इन दिनों सातवें आसमान पर पहुंच गई है. पायलट ने अपने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस और फिर जन संघर्ष यात्रा कर पायलट ने अपने तेवर दिखा दिए, लेकिन पार्टी आलाकमान की ओर से अब तक पायलट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई.  जिससे कई सवाल खड़े हुए. हालांकि अब माना जा रहा है कि कर्नाटक का अध्याय सुलझने के बाद राजस्थान पर कोई बड़ा फैसला लिया जा सकता है.

    सचिन पायलट ने सोमवार को अपनी जन संघर्ष यात्रा का समापन किया. इसके बाद अपनी ही सरकार पर जमकर बरसे. अपनी ही पार्टी को 15 दिन का समय देकर पायलट ने कांग्रेस आलाकमान के सामने सबसे बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. इस बीच, गहलोत ने पायलट और उनके समर्थक विधायकों पर चुनाव से ठीक पहले भाजपा से करोड़ों रुपये लेने का आरोप लगाया. जिससे राजस्थान की राजनीति धधक उठी है.   इसके बाद पायलट ने भी तेवर दिखाए और बिना पार्टी की इजाजत के प्रेस कॉन्फ्रेंस कर गहलोत को आड़े हाथ ले लिया. यहां तक कि पायलट ने कहा कि गहलोत की नेता सोनिया गांधी नहीं बल्कि वसुंधरा राजे सिंधिया हैं. 

    कर्नाटक के बाद सुलझाया जाएगा राजस्थान का मसला

    कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान ही राजस्थान में सचिन पायलट तीखे स्वर में सरकार की आलोचना करते रहे. कांग्रेस हाईकमान कर्नाटक चुनाव में बिजी रहने के चलते सचिन पायलट के रवैये पर नोटिस तक नहीं भेजा. कर्नाटक चुनाव में फायदे और नुकसान को देखते हुए कांग्रेस ने इस मामले में तटस्थ रहने का फैसला किया. हालांकि, अब पार्टी ने बहुमत के साथ कर्नाटक में सरकार बना ली है. ऐसे में माना जा रहा है कि अब पायलट की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

    क्या राजस्थान में होगा पंजाब जैसा खेल?

    राजस्थान की राजनीति पर शुरू से नजर डालें तो लगता है कि पायलट का एक पासा भी गहलोत के सामने सही नंबर नहीं ला पाएगा. यह बात कांग्रेस भी बखूबी जानती है. इन्हें हटाने का मतलब राजस्थान में बड़ा नुकसान करना है. ऐसा ही एक प्रयोग कांग्रेस ने पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर किया, जहां पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा. ऐसे पार्टी गहलोत को हटाकर पंजाब जैसी स्थिति उत्पन्न नहीं करना चाहेगी. तलवार की धार पायलट की ओर ही रहने वाली है.

    क्या हाईकमान पायलट के खिलाफ लेगा एक्शन?

    यदि कांग्रेस हाईकमान सचिन पायलट के खिलाफ कार्रवाई करती है तो पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है, लेकिन इससे कहीं ज्यादा अशोक गहलोत को सीएम की कुर्सी से हटाने में खतरा है. पार्टी के बड़े नेताओं का मानना है कि अगर सचिन के खिलाफ कार्रवाई हुई तो पार्टी को इतना नुकसान नहीं होगा. पार्टी जानती है कि राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी गहलोत ने पिछली बार भी राजनीतिक संकट के दौरान कहा था कि वह किसी भी हाल में सरकार नहीं गिरने देंगे, पायलट गुट की बगावत के बाद भी संख्या गहलोत के पक्ष में थी. 

    गहलोत के जाल में फंसे पायलट?

    अब इस बीच यह समझना भी जरूरी है कि चुनाव से ठीक पहले सचिन पायलट को भड़काने का काम किया गया. और राजस्थान की सियासत में पायलट पर कार्रवाई की मांग अब धीरे धीरे उठने लगी है.और यह  जादूगर गहलोत की सोची समझी चाल माना जा रहा है. गहलोत ने सही टाइमिंग देखकर भाषण में पायलट गुट का जिक्र किया और बीजेपी पर करोड़ों रुपये लेने का आरोप लगाया. यह पायलट के लिए एक जाल की तरह था, क्योंकि गहलोत अच्छी तरह जानते थे कि वह इस पर प्रतिक्रिया जरूर देंगे और ऐसा ही हुआ. पायलट ने नाराज होकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और उसके बाद अब बगावती रुख अख्तियार कर लिया है. जिससे गहलोत के लिए उन्हें रास्ते से हटाना और भी आसान हो गया है। यानी पायलट इस बार गहलोत के जाल में फंस गए हैं.

    अब पायलट के पास बचे हैं ये विकल्प

    अब सवाल यह है कि अगर कर्नाटक का अध्याय खत्म होने के बाद कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट के खिलाफ कोई बड़ा फैसला लेता है तो पायलट कहां उतरेंगे और उनके पास क्या विकल्प बचे हैं. दरअसल, सचिन पायलट खुद जानते हैं कि वह गहलोत के साथ कांग्रेस में आगे नहीं बढ़ सकते, ऐसे में उनके बीजेपी में शामिल होने के भी कयास लगाए जा रहे हैं.

    हालांकि बीजेपी में शामिल होने से भी सचिन पायलट की महत्वाकांक्षा पूरी नहीं होगी, बल्कि वहां उनका कद और भी कम हो जाएगा. बीजेपी में सीएम पद के लिए अभी से ही कई दावेदार सिर उठा रहे हैं. जिसमें गजेंद्र सिंह शेखावत, वसुंधरा राजे, सतीश पूनिया और राजेंद्र राठौर जैसे बड़े नेता शामिल हैं. ऐसे में पायलट के लिए बीजेपी में दूर दूर तक कोई जगह नहीं है. सचिन पायलट को बीजेपी के अलावा आम आदमी पार्टी से भी ऑफर मिलने की बात सामने आई, जिसके बाद बताया गया कि पायलट ने इससे साफ इनकार कर दिया.

    नई पार्टी लॉन्च कर सकते हैं- पायलट

    अब सचिन पायलट के पास अपनी नई पार्टी लॉन्च करने का विकल्प हो सकता है. उन्होंने अपनी जन संघर्ष यात्रा के बाद 15 दिन का अल्टीमेटम दिया है. उन्होंने कहा कि अगर भ्रष्टाचार को लेकर उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो वह राजस्थान में बड़ा जन आंदोलन शुरू करेंगे. पिछले चार साल में उनकी मांग पूरी नहीं होने के कारण गहलोत भविष्य में भी उनकी बात नहीं सुनेंगे. यानी पायलट के पास नई पार्टी बनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा.

    पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर ले सकते हैं बड़ा फैसला 

    कहा जा रहा है कि सचिन पायलट अपने पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि 11 जून को अपनी नई पार्टी की शुरुआत कर सकते हैं. जिसके बाद अगर उनके समर्थक आने वाले चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो पायलट किंग मेकर की भूमिका में हो सकते हैं. जिस तरह हरियाणा में जेजेपी के दुष्यंत चौटाला बीजेपी को समर्थन देकर डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठे हैं, उसी तरह सचिन पायलट भी राजस्थान में सत्ता तक पहुंचने का रास्ता तलाश सकते हैं. हालांकि इसके लिए उन्हें जादूगर गहलोत के जादू को तोड़ना होगा.