जमीन की लड़ाई से अफीम की खेती तक, ये हैं मणिपुर हिंसा के पीछे का असल कारण

    मणिपुर के कुल क्षेत्रफल का 89 फीसदी हिस्सा पहाड़ी है. यहां मुख्य रूप से तीन समुदाय के लोग रहते हैं. इनमें मैतेई, नागा और कुकी शामिल हैं. मैतेई की कुल आबादी 53 फीसदी है. जबकि 40 फीसदी में नागा और कुकी समुदाय हैं.

    पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर पिछले एक महीने से हिंसा की चपेट में है. मैतेई और कुकी समुदायों के बीच भड़की हिंसा में अब तक 100 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. सैकड़ों के घायल होने की खबर है. ताजा जानकारी के मुताबिक हिंसा पर काबू पाने के लिए सेना और असम राइफल्स के 10 हजार से ज्यादा जवान राज्य में केंद्र सरकार की ओर से तैनात किए गए हैं.

    प्रदर्शन के दौरान भड़की थी हिंसा 

    इस हिंसा के पीछे की वजह यह है कि जहां एक तरफ मैतेई समुदाय द्वारा आरक्षण की मांग की जा रही है. तो वहीं नागा और कुकी समुदाय के लोग मैतेई की मांग के विरोध में सड़क पर उतर आए हैं. दरअसल, हाईकोर्ट ने सरकार से मैतेई समुदाय को आरक्षण देने पर विचार करने को कहा था, जिस पर नागा और कुकी समुदायों ने विरोध-प्रदर्शन किया. प्रदर्शन के दौरान ही हिंसा भड़क उठी थी. लेकिन ये विरोध क्यों.. इसके पीछे जमीन और अफीम की लड़ाई बताई जा रही है. कहा जा रहा है कि अगर मैतेई को आरक्षण मिलता है. तो नागा-कुकी के हिस्से की जमीन पर बंट सकता है.

    मणिपुर में जबरदस्त तरीके से होती है अफीम की खेती 

    एक रिपोर्ट के मुताबिक मणिपुर में अफीम की खेती जबरदस्त तरीके से होती है. अफीम की खेती के लिए मणिपुर में 15,500 एकड़ भूमि का उपयोग किया जाता है. इसमें से कुकी-चिन समुदाय के लोग 13 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन पर अफीम की खेती करते हैं. नागा करीब 2300 एकड़ जमीन पर खेती करते हैं. बाकी 35 एकड़ जमीन पर दूसरे समुदाय के लोग अफीम की खेती करते हैं.

    जमीन की लड़ाई से अफीम की खेती तक 

    आपको बता दें कि मणिपुर के कुल क्षेत्रफल का 89 फीसदी हिस्सा पहाड़ी है. यहां मुख्य रूप से तीन समुदाय के लोग रहते हैं. इनमें मैतेई, नागा और कुकी शामिल हैं. मैतेई की कुल आबादी 53 फीसदी है. जबकि 40 फीसदी में नागा और कुकी समुदाय हैं. नागा और कुकी समुदायों को अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासी समुदाय (ST) होने का दर्जा प्राप्त है. जबकि मैतेई समुदाय अनुसूचित जाति (SC) यानी गैर आदिवासी समुदाय से आते हैं.

    हिंदू समुदाय से संबंध रखते हैं मैतेई

    मणिपुर के कानून के अनुसार पहाड़ी क्षेत्र में आदिवासी समुदाय (अनुसूचित जनजाति/ST) से आने वाले लोग ही बस सकते हैं, मणिपुर का लगभग 90 प्रतिशत क्षेत्र पहाड़ी है. ऐसे में 53 फीसदी आबादी वाले मैतेई समुदाय को 90 फीसदी क्षेत्र से वंचित होना पड़ रहा है. जिसके कारण वह खेती से वंचित रह जाते हैं. मैतेई हिंदू समुदाय से संबंध रखते हैं जबकि नागा और कुकी ईसाई धर्म से जुड़े हैं.

    मैतेई समुदाय के 90 प्रतिशत क्षेत्र से वंचित होने का मुख्य कारण यह है कि मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा प्राप्त नहीं है. जिसके कारण वे अपनी आजीविका चलाने के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में बस नहीं सकते हैं. उनके पास जमीन नहीं जिससे वह खेती कर अपनी अजीविका चला सके. इसलिए सालों से मैतेई समुदाय के लोग अपना दर्जा अनुसूचित जाति (SC) से बदलकर अनुसूचित जनजाति (एसटी) करने की मांग कर रहे हैं, ताकि वे भी पहाड़ी इलाकों में जाकर बस सकें.