एक शख्स दो लीवर..., मेडिकल साइंस की दुनिया में चमत्कार; देश में पहली बार हुआ डुअल लोब ट्रांसप्लांट

    महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, जयपुर की लिवर ट्रांसप्लांट टीम ने 125 किलोग्राम से अधिक वजन वाले मरीज में देश के पहले डुअल लोब लिवर ट्रांसप्लांट में सफलता हासिल की है. आसान भाषा में कहें तो यह एक ही व्यक्ति में एक साथ दो लिवर प्रत्यारोपित किए जाने का मामला है. गौरतलब है कि सोलह घंटे तक चले इन ऑपरेशनों में दो दर्जन से अधिक ट्रांसप्लांट सर्जन, लीवर रोग विशेषज्ञों, ट्रांसप्लांट एनेस्थेटिस्ट और तकनीशियनों ने यह स्वर्णिम सफलता हासिल की और मरीज को नई जिंदगी दी.

    सेंटर फॉर डाइजेस्टिव साइंसेज के अध्यक्ष और प्रसिद्ध लिवर ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ डॉ. नैमिष एन मेहता ने कहा कि लिवर फेलियर से पीड़ित 126 किलोग्राम वजन वाले 50 वर्षीय व्यक्ति इंद्र पाल को पीलिया, पेट में पानी आना, सूजन जैसे लक्षण थे. मरीज को खाने-पीने में भी दिक्कत होने लगी थी.

    लीवर रिप्लेसमेंट एक गंभीर चुनौती

    जांच से पता चला कि लिवर प्रत्यारोपण ही जीवन बचाने का एकमात्र तरीका था. आम तौर पर, दाता से प्राप्त दायां अंग रोगी के लीवर में दाहिनी ओर जोड़ा जाता है और बायां दाता अंग बाईं ओर जोड़ा जाता है. छोटी पोर्टल धमनी, पोर्टल शिरा, पित्त नली और चार रक्त वाहिकाएं जो एक बॉलपेन रिफिल के आकार के बारे में यकृत से रक्त ले जाती हैं, को बहुत सावधानी और सटीकता से एक साथ जोड़ना पड़ा.

    इतने गंभीर मरीज का लीवर बदलना एक गंभीर चुनौती थी. साथ ही लीवर का आकार भी बड़ा था. इसलिए, उनकी पत्नी से प्राप्त लीवर का आकार पर्याप्त नहीं था. इसीलिए एक अन्य डोनर, जो मरीज की भाभी थी, को भी अंगदान के लिए तैयार किया गया.

    पत्नी और भाभी ने अंगदान किया

    पत्नी के पास से मिला अंग 600 ग्राम का था. 400 ग्राम वजन के अधिक लीवर की आवश्यकता थी. जिसे भाभी ने दान कर दिया था. एक तरह से डबल लिवर ट्रांसप्लांट जैसे जटिल ऑपरेशन एक ही समय में एक ही व्यक्ति पर किए गए. सबसे पहले मरीज का क्षतिग्रस्त लीवर निकाला गया. उनकी पत्नी से प्राप्त लीवर को दाहिनी ओर और उनकी भाभी से प्राप्त लीवर को दाहिनी ओर प्रत्यारोपित किया गया. वहीं, बड़ी सर्जरी के जरिए दोनों डोनर्स का लिवर आंशिक रूप से निकाला गया. इस दौरान मरीज को पंद्रह बोतल खून भी चढ़ाया गया. इतना जटिल ऑपरेशन देश के दो या तीन चुनिंदा ट्रांसप्लांट सेंटरों पर ही संभव है.

    इंद्रपाल की पत्नी श्रीमती तारावती और भाभी मंजू द्वारा किया गया उपकार पूर्णतः सफल हुआ. अब डोनर और मरीज़ भी 20 दिनों के गहन उपचार के बाद ठीक हो गए हैं और उन्हें घर भेज दिया गया है.

    डॉ. नैमिष मेहता के कुशल नेतृत्व में मिली सफलता

    महात्मा गांधी मेडिकल यूनिवर्सिटी के चेयरमैन डॉ. विकास चंद्र स्वर्णकार ने कहा कि डॉ. नैमिष मेहता के कुशल एवं अनुभवी नेतृत्व के कारण ही यह स्वर्णिम सफलता हासिल हो सकी है। वह अब तक पंद्रह सौ से अधिक सफल लीवर प्रत्यारोपण कर चुके हैं। इसके साथ ही दो अन्य सर्जन डॉ. आनंद नागर, डॉ. विनय महला, लिवर विशेषज्ञ डॉ. करण कुमार, डॉ. वीए सारस्वत, ट्रांसप्लांट एनेस्थेटिस्ट डॉ. गणेश निमझे, डॉ. आनंद जैन, डॉ. गौरव गोयल की भी अहम भूमिका रही. इसके अलावा, मॉड्यूलर ऑपरेशन थिएटर, संक्रमण रहित समर्पित गहन देखभाल ने इस जीवन-रक्षक प्रयास को सफल बनाया.

    विश्वविद्यालय के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. एमएल स्वर्णकार ने डॉक्टरों की इस अनूठी सफलता को देश और राज्य का गौरव बताया और बेहद जोखिम भरे इलाज के लिए मरीज के परिजनों के साहसी प्रयासों की सराहना की. उन्होंने कहा कि अब प्रदेश में ही विश्व स्तरीय उपचार विश्व स्तरीय सफलता दर के साथ किफायती दरों पर किया जा रहा है.

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