शव के साथ 'सेक्स' दुष्कर्म नहीं, हाईकोर्ट ने आरोपी को किया बरी, पढ़ें पूरा मामला

    रंगराजू पर एक महिला की हत्या कर उसके शव के साथ दुष्कर्म करने का आरोप था. निचली अदालत ने आरोपी को बलात्कार और हत्या का दोषी मानते हुए दोषी ठहराया और जुर्माना लगाया. लेकिन घटना के 8 साल बाद हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया है.

    कर्नाटक के तुमकुर जिले के एक गांव में 25 जून 2015 को हुई एक घटना आज गुरुवार को सुर्खियों में आई है. घटना के आरोपी रंगराजू पर एक महिला की हत्या कर उसके शव के साथ दुष्कर्म करने का आरोप था. निचली अदालत ने आरोपी को बलात्कार और हत्या का दोषी मानते हुए दोषी ठहराया और जुर्माना लगाया. लेकिन घटना के 8 साल बाद हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया है.

    शव को इंसान या व्यक्ति नहीं माना जा सकता- हाईकोर्ट 

    हाई कोर्ट ने तर्क दिया कि कानून के मुताबिक लाश को व्यक्ति नहीं माना जा सकता. इसलिए रेप से जुड़ी आईपीसी की धारा 376 आरोपी पर लागू नहीं होती. धारा 375 और 377 के तहत भी शव को इंसान या व्यक्ति नहीं माना जा सकता. हालांकि हाई कोर्ट ने आरोपियों को बरी करने के साथ ही केंद्र सरकार को 6 महीने के भीतर आईपीसी की धारा 377 में संशोधन करने और मानव शवों या जानवरों की लाशों के साथ यौन संबंध बनाने पर सजा का प्रावधान करने का निर्देश दिया.

    क्या है पूरा मामला

    रंगराजू उर्फ वाजपेयी पर आरोप था कि उसने गांव की ही एक 21 वर्षीय युवती की हत्या कर उसके शव के साथ दुष्कर्म किया. 9 अगस्त 2017 को तुमकुर के जिला एवं सत्र न्यायालय ने रंगराजू को हत्या और बलात्कार का दोषी ठहराया. 14 अगस्त को उसे हत्या के जुर्म में उम्रकैद और 50 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई थी. रंगराजू ने निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. जिसके बाद हाईकोर्ट ने तर्क दिया कि आईपीसी की धारा 376 उनके खिलाफ लागू नहीं होती है और निचली अदालत द्वारा दी गई सजा गलत थी.

    खामियों को दूर करने हेतु केंद्र को निर्देश 

    न्यायमूर्ति बी. वीरप्पा की अध्यक्षता वाली उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने कहा कि भले ही धारा 377 अप्राकृतिक यौन संबंध से संबंधित है, लेकिन यह शवों को कवर नहीं करती है. महिला के शव के साथ सेक्स पर भी धारा 376 लागू नहीं होती, इसलिए ट्रायल कोर्ट ने सजा सुनाकर गलती की. हाई कोर्ट ने रेप के मामले में आरोपी रंगराजू को बरी तो कर दिया लेकिन केंद्र को 6 महीने के भीतर कानून की खामियों को दूर करने का निर्देश भी साथ ही साथ दे दिया दिया.