सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर लगाई तत्काल रोक, यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है, 6 मार्च तक पार्टियां दें हिसाब

    लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा लेने पर तत्काल रोक लगा दी. कोर्ट ने कहा कि बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है.

    सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर लगाई तत्काल रोक, यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है, 6 मार्च तक पार्टियां दें हिसाब

    लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा लेने पर तत्काल रोक लगा दी. कोर्ट ने कहा कि बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है. यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. 6 मार्च तक सभी पार्टियां इसका हिसाब दें.

    5 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया. चीफ जस्टिस ने कहा, 'पॉलिटिकल प्रॉसेस में राजनीतिक दल अहम यूनिट होते हैं. पॉलिटिकल फंडिंग की जानकारी, वह प्रक्रिया है, जिससे मतदाता को वोट डालने के लिए सही चॉइस मिलती है. वोटर्स को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है, जिससे मतदान के लिए सही चयन होता है.'


    सुप्रीम कोर्ट ने 2 नवंबर को फैसला सुरक्षित रखा था

    CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने तीन दिन की सुनवाई के बाद 2 नवंबर 2023 को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने की. इसे लेकर चार याचिकाएं दाखिल की गई थीं.

    याचिकाकर्ताओं में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), कांग्रेस नेता जया ठाकुर और CPM शामिल है. केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे. सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी की थी.

    पांच साल पहले आया था इलेक्टोरल बॉन्ड

    केंद्र सरकार ने 2 जनवरी 2018 को बॉन्ड स्कीम को नोटिफाई किया था. स्कीम के प्रावधानों के मुताबिक, इलेक्टोरल बॉन्ड को कोई भी नागरिक अकेले या किसी के साथ मिलकर खरीद सकता है. योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई.

    साल 2023 में हुई सुनवाई

    इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम मामले में 1 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखते हुए कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता आई है. पहले नकद में चंदा दिया जाता था, लेकिन अब चंदे की गोपनीयता दानदाताओं के हित में रखी गई है.

    चंदा देने वाले नहीं चाहते कि उनके दान देने के बारे में दूसरी पार्टी को पता चले. इससे उनके प्रति दूसरी पार्टी की नाराजगी नहीं बढ़ेगी. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर ऐसी बात है तो फिर सत्ताधारी दल विपक्षियों के चंदे की जानकारी क्यों लेता है? विपक्ष क्यों नहीं ले सकता चंदे की जानकारी?

    अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे, जबकि सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण और विजय हंसारिया ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी की थी.

    31 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में पहले दिन की सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे, जबकि सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण और विजय हंसारिया ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी की थी. प्रशांत भूषण ने कहा था कि ये बॉन्ड केवल रिश्वत हैं, जो सरकारी फैसलों को प्रभावित करते हैं. नागरिकों को जानने का हक है कि किस पार्टी को कहां से पैसा मिला.

    क्या है पूरा मामला

    इस योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई. 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें. हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई.

    बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया. इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था.

    इस पर सुनवाई के दौरान तत्कालीन CJI एसए बोबडे ने कहा कि मामले की सुनवाई जनवरी 2020 में होगी. चुनाव आयोग की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए सुनवाई को फिर से स्थगित कर दिया गया. 

    चुनावी बॉन्ड क्या है?

    2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पेश किया था. 29 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया. ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है. जिसे बैंक नोट भी कहते हैं. इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है.

    अगर आप इसे खरीदना चाहते हैं तो आपको ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच में मिल जाएगा. इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता है. बस वो पार्टी इसके लिए एलिजिबल होनी चाहिए.