नहीं थम रही मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हिंसा, अब तक 100 से अधिक मौतें, पढ़ लीजिए पूरा अपडेट

    ताजा स्थिति यह है कि तीन मई से अब तक मणिपुर में ताजा हिंसा में सौ से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. सैकड़ों लोग घायल हुए हैं और अनगिनत लोग बेघर हो गए हैं. लोगों को भोजन और आवश्यक वस्तुओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

    मणिपुर में करीब महीने भर से सामाजिक संघर्ष अपने चरम पर है. लगातार हिंसा (Manipur Violence) हो रही है. लोग मारे जा रहे हैं. कुकी (kuki) और मैतेई (Meitei) समुदायों के बीच की खाई चौड़ी होती जा रही है. सुरक्षा अधिकारियों के सूत्रों की मानें तो मणिपुर में हिंसा की स्थिति तब तक और बिगड़ेगी जब तक कि केंद्र इस संकट को हल करने के लिए कुछ बड़े कदम नहीं उठाता. समुदायों को भूमि नियंत्रण के लिए और अतीत में अपनी पहचान हासिल करने के लिए एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते हुए देखा जा रहा है.

    खाने और आवश्यक वस्तुओं के लिए संघर्ष जारी

    ताजा स्थिति यह है कि तीन मई से अब तक मणिपुर में हिंसा में सौ से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. सैकड़ों लोगों के घायल होने की खबर है और अनगिनत लोग बेघर हो गए हैं. लोगों को भोजन और आवश्यक वस्तुओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

    एक सुरक्षा अधिकारी का कहना है कि भले ही स्थिति बाहर से नियंत्रित दिख रही हो, लेकिन अंदरुनी तौर पर यह काफी गंभीर बनी हुई है. मणिपुर में मैतेई और कुकी दोनों समुदायों के बीच विश्वास पूरी तरह से टूट चुका है. दोनों एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए हैं. कुकी समुदाय कुकी बहुल क्षेत्रों की ओर पलायन कर रहे हैं, जबकि मैतेई समुदाय मैतेई बहुल क्षेत्रों की ओर पलायन कर रहे हैं. सरकारी कर्मचारियों का भी यही हाल है. वे भी नौकरी की परवाह किए बिना अपने हिसाब से सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर रहे हैं.

    क्या है पूरा मामला 

    आपको बता दें कि मणिपुर के कुल क्षेत्रफल का 89 फीसदी हिस्सा पहाड़ी है. यहां मुख्य रूप से तीन समुदाय के लोग रहते हैं. इनमें मैतेई, नागा और कुकी शामिल हैं. मैतेई की कुल आबादी 53 फीसदी है। जबकि 40 फीसदी में नागा और कुकी समुदाय हैं. नागा और कुकी समुदायों को अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासी समुदाय (ST) होने का दर्जा प्राप्त है. जबकि मैतेई समुदाय अनुसूचित जाति (SC) यानी गैर आदिवासी समुदाय से आते हैं.

    ईसाई धर्म से जुड़े हैं नागा और कुकी

    मणिपुर के कानून के अनुसार पहाड़ी क्षेत्र में आदिवासी समुदाय (अनुसूचित जनजाति/ST) से आने वाले लोग ही बस सकते हैं, मणिपुर का लगभग 90 प्रतिशत क्षेत्र पहाड़ी है. ऐसे में 53 फीसदी आबादी वाले मैतेई समुदाय को 90 फीसदी क्षेत्र से वंचित होना पड़ रहा है. मैतेई हिंदू समुदाय से संबंध रखते हैं जबकि नागा और कुकी ईसाई धर्म से जुड़े हैं.

    मैतेई समुदाय के 90 प्रतिशत क्षेत्र से वंचित होने का मुख्य कारण यह है कि मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा प्राप्त नहीं है. जिसके कारण वे अपनी आजीविका चलाने के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में बस नहीं सकते हैं. इसलिए सालों से मैतेई समुदाय के लोग अपना दर्जा अनुसूचित जाति (SC) से बदलकर अनुसूचित जनजाति (एसटी) करने की मांग कर रहे हैं, ताकि वे भी पहाड़ी इलाकों में जाकर बस सकें.

    इस वजह से भड़क उठी हिंसा 

    मणिपुर में, उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से कहा कि वह 'मैतेई' समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने पर विचार करें. जिसके बाद हाईकोर्ट के इस आदेश के विरोध में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला, जिसके दौरान पूरे राज्य में अचानक हिंसा भड़क उठी. वहीं, मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने की मांग कर रहे समुदाय ने बताया कि यह मुद्दा उनकी पुश्तैनी जमीन, संस्कृति और पहचान से जुड़ा है.