जब पहली बार लाहौर पहुंची थी बस, नवाज शरीफ बांहे फैला स्वागत के लिए खड़े थे, और फिर जो हुआ..

    लाहौर में वाजपेयी और शरीफ ने एक संधि पर हस्ताक्षर किए। दोनों देशों की संसद ने उसी साल उस संधि की मंजूरी भी दे दी। जिसे लाहौर घोषणा कहते हैं। कुछ दिनों तक तो खूब दोस्ताना माहौल रहा, लेकिन दो तीन महीने में ही सबकुछ बदल गया।

    न्यूज़ डेस्क: आज से 24 साल पहले दिल्ली से लाहौर के बीच पहली बार बस चली थी। उस बस में राजनीति, खेल, साहित्य जगत के दिग्गज मौजूद थे। दोनों देशों के बीच बस चलवाने का मकसद था कि रिश्तों में सुधार आए। तो फिर इसकी शुरुआत कोई साधारण तरीके से नहीं बल्कि अनोखे ढंग से होना चाहिए और हुआ भी यही। पहली बार दिल्ली से लाहौर की ओर चली बस में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ, कपिल देव, देव आनंद, जावेद अख्तर, कुलदीप नैयर, शत्रुघ्‍न सिन्‍हा जैसी मशहूर हस्तियां मौजूद थे। बस जब पाकिस्तान बॉर्डर पर पहुंची तो वहां नवाज शरीफ बांहे फैला स्वागत के लिए खड़े थे। 20 फरवरी को लाहौर पहुंचे भारतीय दिग्गजों का खूब आवभगत किया गया, उस दौरान वाजपेयी ने कहा था, 'मैं अपने साथी भारतीयों की सद्भावना और आशा लेकर आया हूं जो पाकिस्तान के साथ स्थायी शांति और सौहार्द चाहते हैं। मुझे पता है कि यह दक्षिण एशिया के इतिहास में एक निर्णायक क्षण है और मुझे उम्मीद है कि हम चुनौती का सामना करने में सक्षम होंगे।' दुनियाभर के लोगों को लगने लगा था कि जो हो रहा है वह ऐतिहासिक है और रिश्ते में सुधार निश्चित है। लेकिन भविष्य के गर्भ में कुछ और ही था। 

    दो तीन महीने में ही सबकुछ बदल गया

    लाहौर में वाजपेयी और शरीफ ने एक संधि पर हस्ताक्षर किए। दोनों देशों की संसद ने उसी साल उस संधि की मंजूरी भी दे दी। जिसे लाहौर घोषणा कहते हैं। कुछ दिनों तक तो खूब दोस्ताना माहौल रहा, लेकिन दो तीन महीने में ही सबकुछ बदल गया। भारत ने जो दोस्ती का हाथ बढ़ाया था उसे पाकिस्तान ने झटककर पीछे खींच लिया, और 1999 के मई महीने में पाकिस्तान ने कारगिल में युद्ध छेड़ दिया। इस दोस्ती में दरार आने के पीछे एक ही शख्स का नाम लिया जाता है, और वो है परवेज मुशर्रफ का नाम। मुशर्रफ उस दौरान पाकिस्तान के तानाशाह राष्‍ट्रपति थे। उन्हीं की सरपरस्ती में पाकिस्तानी सेना ने भारत पर हमला किया था।  

    परवेज मुशर्रफ जब आगरा आए

    कारगिल युद्ध के बाद भी भारत की कोशिश यही रही कि दोनों देशों के बीच संबंध ठीक रहे। एक बार फिर से भारत की ओर से दोस्ती का पैगाम इस्लामाबाद भेजा गया। जिसके बाद परवेज मुशर्रफ भारत आए। आगरा में ऐतिहासिक बैठक हुई। लेकिन नतीजा जस का तस रहा। एक बार फिर भारत के पीठ में छुरा घोंपा गया। इस बार भी साजिश के रचयिता परवेज मुशर्रफ ही थे। मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान भारत-पाक के बीच सबसे खराब माहौल रहा, लेकिन यह बात भी सच है कि इसी दौरान सबसे ज्यादा रिश्तों में सुधार लाने की कोशिशें की गई।